युगों से रक्तपिपासु पिशाचों का एक समूह भारतीय रेगिस्तानों पर नौटंकी एवं क्रीङांगण (सर्कस) का वेष धरे भ्रमण करता आ रहा है । वे असंदेही गाँववालों को अपने आहार हेतु लुभाते हैं जिसकी चकाचौंध से अंधे होकर गाँववाले उन्हें अपने गाँव में मृत्यु का तांडव करने का निमंत्रण दे देते हैं । सदियों से इनके अस्तित्व और इनके भयावह कर्मों पर आजतक किसी को न ही शक हुआ एवं न ही किसी की नजर गयी किन्तु सिर्फ तबतक जबतक की इनके हमले से एक ‘आसिफ’ नामक बच्चा बच नहीं निकला । बड़ा होकर आसिफ एक तस्कर बनता है और एक दिन पकड़ा जाता है । पुलिस ऑफिसर जय और आसिफ रेगिस्तान में फस जाते हैं और एक किले में आश्रय लेते हैं जो बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स के नियंत्रण में आता है, जिसका हेड ऑफिसर चंचल और कट्टर ‘दरोगा भैरो सिंह’ है । उस भयवाह रात में सीमा पर एक बार पुनः पिशाचों का कारवाँ नजर आता है, आसिफ इससे भयभीत हो जाता है और सभी को सतर्क होने की चेतावनी भी देता है लेकिन कोई भी उसपर यकीन नहीं करता । नौटंकी की चकाचौंध में आसिफ की बात को नकार कर एवं पिशाचों को किले में आमंत्रित करके ये सबसे बड़ी भूल कर देते हैं, फलस्वरूप पिशाचों के रक्तपात से वो रात एक खुनी रात में तब्दील हो जाती है ।
आसिफ, जय, दुर्गा और भैरो सिंह एकसाथ मिलकर पिशाचों का सामना करते हैं। अपनी दिलेरी से ये उन पिशाचों का सर्वनाश कर देते हैं, पर दुर्भाग्यवश इस जंग में दरोगा भैरो सिंह की जान चली जाती है। आसिफ द्वारा किये गए विस्फोट से किले के साथ-साथ सारे पिशाच भी जलकर ख़ाक हो जाते हैं, पर पिशाचों की महारानी भैरवी उससे बाच निकलती है और जय की गर्दन काट लेती है, जय मरते-मरते भैरवी को भी साथ लेकर मरता है। निराशा, दुःख और भय जैसे न जाने कितने ही दर्दनाक भाव लिए आसिफ और दुर्गा वहाँ से बच निकलते हैं, उनके साथ रह जाती है तो बस उस भयानक रात की भयानक यादें।
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